Thursday 13 August, 2009

दलित टूरिज्म पर “ गांधी ”

बापू ने देश में आज़ादी की लड़ाई से पहले इस देश मे रहनेवालों और उनकी समस्याओं को करीब से देखना चाहा, उन्होने भारत भ्रमण किया, गांव- गांव, कस्बों-कस्बों में लोगों से मुलाकात की उन्हे महसूस हुआ कि भारत गांव में बसता है और अगर इसका विकास करना है तो पहले गांव का विकास करना होगा । इस बात को कई दशक बीत चुके,आज़ादी के बाद हमारी अपनी सरकार बनी,लगा सबकुछ बदलने वाला है बापू की बातें अब हकीक़त का रूप लेने वाली हैं । समय का पहिया घूमा भारत “इंडिया” में बदलने लगा । शहरों में उंची उंची इमारतें , आलीशान होटल्स , बड़ी-बड़ी इंडस्ट्रीज़ बसने लगी । लोगों के रहन सहन में बदलाव आने लगा। लेकिन भारत तो वहीं का वहीं का रह गया गांव में । राजनीति में भी बदलाव आया, मुद्दे बदलने लगे,उद्देश्य बदलने लगे,कभी भारत की खातिर राजनीति हुआ करती थी अब भारत के सहारे राजनीति होने लगी । आज भी “गांधी “ निकलते हैं गांव के दौरे पर लेकिन एसी कमरों से । दलितों के घर में रात गुज़ारते हैं उनकी व्यथा-कथा पर अच्छा खासा भाषण देते हैं उनकी हालत पर अफसोस जताते हैं अफसोस की इस सूची में कभी कलावती तो कभी शशिकला का नाम जुड़ जाता है ये “गांधी “ अपने भाषण में ये बताना नहीं भूलते कि ये ग़रीब दलितों की पीड़ा है । इनकी इस हालत के लिये वो दूसरे दलों की सरकार को ज़िम्मेदार ठहराते हैं । गांव में लोगों की समस्या सुन उसे दूर करने का आश्वासन देकर उड़न खटोले से वापस लौट जाते हैं । कलावती, शशिकला मीडिया के लिये खबर बन जाती है कोई इसे गरीब दलितों का हाल जानने का एक अच्छा प्रयास बताता है तो कोई इसे सियासत का हिस्सा । कलावती को आस जगती है कि अब उसका कुछ भला ज़रूर होगा, ऐसे में साल बीत जाता है लेकिन बदलता कुछ नहीं, हां राजनीति में कदम रखने वाले “गांधी” सियासत में परिपक्व होते जाते हैं, कब, कहां और कैसे राजनीतिक फायदे के लिये भारत की नब्ज़ पकड़नी है वो सीख जाते हैं । एक साल बाद “गांधी” फिर से गांव के दौरे पर निकलते हैं जहां इस बार विद्यावती उनका इंतज़ार कर रही होती है फिर से मीडिया कैमरों के फ्लैश चमकने लगते हैं ” गांधी ” गरीब दलितों की पीड़ा पर अफसोस ज़ाहिर करते है । विद्यावती को लगता है कि इस “गांधी” की तो केन्द्र में सरकार है जो हमारी तक़दीर बदल सकती हैं लेकिन विद्यावती को एहसास कराया जाता है कि राज्य में तो दलित मुखिया की ही सरकार है फिर भी तुम्हारी ऐसी हालत है, ऐसे में सरकार बदले बगैर वो उनकी ज्यादा मदद नहीं कर सकते । आज़ादी के बाद से दशकों तक देश में “गांधी” की पार्टी का ही शासन रहा फिर भी कलावती और विद्यावती को अपने हालात बदलने का अब तक इंतज़ार क्यों है ? इस पर “गांधी” खामोश रहते हैं । दरअसल इस गांधी के पास उसका जवाब नहीं क्योंकि इस “गांधी” और दशकों पुराने उस गांधी में काफी फर्क है वो महात्मा गांधी थे जिनके लिये भारत का विकास मिशन था और उसके लिये एक विज़न था आज के इन “गांधी” के पास भी एक मिशन है पॉलीटिकल मिशन जिसके लिये वो कभी कभी “दलित टूरिज़्म “ पर निकलते हैं ।

Sunday 9 August, 2009

राजनीति की खेती

बुंदेलखंड का इलाका पिछले कई सालों से सूखे की मार झेल रहा है,,यहां की धरती पानी के लिये तरसती रही है लेकिन राजनेताओं को इस पर राजनीति के लिये खूब मौका देती रही है । मायावती सरकार यूं तो 2007 से ही केन्द्र सरकार से विशेष पैकेज की मांग करती रही है और केन्द्र भी उसे आश्वासन देता रहा है लेकिन मौसम बदलने के साथ साथ केन्द्र और राज्य सरकार की राजनीति की प्राथमिकताएं भी बदलती रही हैं । दो साल पहले शर्मा कमिटी इलाके का दौरा कर इसके समाधान के लिये अपनी सिफारिशें केन्द्र को सौंप चुकी । लेकिन उस पर कोई अमल नहीं हुआ । कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव से पहले इन इलाकों का दौरा कर काफी सुर्खियां बटोरी । दलितों के घर रात गुजारी उनकी पीड़ा पर संसद में लम्बे चौड़े भाषण दिये । लेकिन ये दौरा राजनीति में "दलित टूरिज्म" से ज्यादा नही था । एक बार फिर बुंदेलखंड खुद के लिये सूखा लाई है और नेताओं के लिये राजनीतिक जमीन । मायावती सरकार ने 58 ज़िले सूखाग्रस्त घोषित कर केन्द्र से मदद की गुहार लगाई है । वहीं कांग्रेस महासचिव के बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण की बात छेड़ दी है जिसका माया सरकार ने विरोध किया है । दरअसल बुंदेलखंड में 37 प्रतिशत दलित हैं। यूपी में दलित आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा बुंदेलखंड में रहता है । यहां कांग्रेस अपना पुराना दलित वोट बैंक मजबूत करना चाहती है जिससे बीएसपी खासी चिंतित है । यूपी में एक दर्जन सीटों पर विधानसभा उपचुनाव होने हैं इसे लेकर हर दल अपने अपने तरीके से इस मुद्दे को भुनाने की कोशिश कर रहा है । लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में जिस बुंदेलखंड की रियासत झांसी ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया वह अंग्रेजों के समय भी विकास दूर रहा और आज़ादी के 62 साल बाद भी विकास से दूर है । एक तरफ प्रदेश सरकार मू्तियों और पार्कों के लिये करोड़ों रूपए खर्च कर रही है वहीं किसान तंगहाली में आत्महत्या कर रहे हैं । केन्द्र इन सब के लिये राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहरा रही है विशेष पैकेज की मांग पर सालों से विचार ही कर रही है और अब बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण का नया शिगुफा छोड़ किसे फुसलाने की कोशिश कर रही है वो ही जाने । इन सब के बीच यहां के लोग कभी केन्द्र कभी राज्य सरकार तो कभी आसमान की ओर टकटकी लगाए मदद की बाट ही जोह रहे हैं । हां एक बात तो पक्की है यहां की सूखी धरती में फसल उगे न उगे राजनीति की खेती अच्छी हो रही है ।

Sunday 8 February, 2009

क्या है बर्दाश्त की सीमा ?


पाकिस्तान आतंकवाद का गढ़ है और आईएसआई इस गढ़ को मज़बूती प्रदान कर रही है,,रक्षामंत्री ए के एंटोनी और विदेश सचिव शिवशंकर मेनन के हालिया बयान में कोई नई बात नहीं है, हां ये बयान ऐसे समय आए हैं जब पाकिस्तान मुम्बई में हुई 26/11 घटना की जांच कर रहा है इससे पहले भी सरकार की ओर से ऐसे बयान आते रहे हैं जैसे कि "भारत अब आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं करेगा , अगर पाकिस्तान आतंकियों को नहीं सौंपता तो भारत के सारे विकल्प खुले हैं" ये बयान ठीक वैसे ही बयान हैं जैसा कि संसद पर हमले के बाद तत्कालीन एडीए सरकार ने दिये थे । लेकिन सरकारों ने सिवाय बयानबाज़ी और बर्दाश्त के कुछ नही किया, न ही आतंकी घटनाओं पर लगाम लगी, न ही पाकिस्तान से प्रायोजित आतंकवाद को रोकने मे कामयाबी मिली। दिल्ली , हैदराबाद, गुजरात, राजस्थान, मुम्बई धमाकों से दहलती रही और केन्द्र एवं राज्य सरकारें आंतरिक सुरक्षा में चूक को लेकर एक दूसरे पर आरोप लगाती रही । लोगों के गुस्से को तत्काल शांत करने के लिये आतंकवाद के खिलाफ लम्बे चौड़े जोशीले भाषण और बयान देती रही ताकि जनता को ये न लगे कि सरकार संवेदनहीन है । लेकिन 26/11 जैसी घटना ने साबित कर दिया कि आतंकी जब चाहें जहां चाहे अपने नापाक मंसूबों को अंजाम दे सकते हैं । घटना की अमेरिका सहित सभी देशों ने कड़ी निंदा की । पाकिस्तान को कड़े शब्दों में अपने यहां चल रहे आतंकी गतिविधियों को खत्म करने और आतंकियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने को कह दिया । विश्व की सबसे प्रतिष्ठित जांच एजेंसी एफबीआई ने पाकिस्तान से चल रहे आतंक के खिलाफ सबूत पेश कर दिये । गृहमंत्री पी चिदम्बरम ने अमेरिका सहित कई शक्तिशाली देशों में जाकर पाकिस्तान के खिलाफ दबाव बनाने की कोशिश की । जिसके बाद थेथर पाकिस्तान भी ये मानने को तैयार हो गया कि मुम्बई हमले में गिरफ्तार कसाब पाकिस्तानी है । भारत ने पाकिस्तान को हमले से सम्बन्धित महत्वपूर्ण डोज़ियर सौंपा जिस पर जांच की बात पाकिस्तान ने कही । अब पाकिस्तान की ओर से ये बातें सामने आ रही है कि 26/11 की आतंकी घटना में पाकिस्तान की किसी एजेंसी की कोई कोई भूमिका नही है हमले की साज़िश भी पाकिस्तान में नहीं रची गई। जिसे पचा पाना किसी के लिये भी कठिन है ये तो वही बात हो गई कि किसी हत्यारे को उसी से जुड़े मामले की जांच करने को कह दिया गया हो । 26/11 की घटना के बाद भारत की ओर से बेहद तल्ख लहज़े में कहा गया कि भारत के सारे विकल्प खुले हैं पीओके में चल रहे आतंकी शिविरों को नष्ट करने पर विचार करने की भी बातें सामने आईं । लेकिन घटना को हुए दो महीने से ज्यादा वक्त बीत चुका है लेकिन सिवाय कसाब की गिरफ्तारी के मामले में कोई प्रगति नहीं हुई । इस बीच गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति ने आतंकवाद के खिलाफ लम्बे चौड़े भाषण दे दिये। हर साल की तरह अत्याधुनिक अस्त्र शस्त्रों से सुसज्जित हमारी सेनाओं की सैन्य क्षमताओं का प्रदर्शन भी हो गया। आपकों बता दें कि देश की आन बान और अमन चैन की हिफाज़त के लिये जनता के पैसे रक्षा बजट का एक बड़ा हिस्सा बनती हैं इसी यूपीए सरकार 2008-2009 के रक्षा बजट में 10 फीसदी की एतिहासिक वृद्धि की थी । देश में पहली बार रक्षा बजट का आंकड़ा एक लाख करोड़ के पार पहुंच गया। पाकिस्तान की ढीठई बार- बार हमें मूंह चिढ़ा रही है लेकिन हमारी ज़रूरत से ज्यादा दरियादिल सरकार इसे बर्दाश्त कर रही है । आवाम की बर्दाशत की सीमा खत्म होती जा रही है वो बयानबाज़ियां नहीं सुनना चाहती अपने ऊपर लगातार हो रहे आतंकी हमले के खिलाफ कठोर कार्रवाई होते देखना चाहती है लेकिन ऐसा सम्भव नहीं क्योंकि सरकार की बर्दाश्त की सीमा अभी बाक़ी है,,आम चुनाव करीब है इसलिये ये बताने के लिये कि सरकार इस मसले पर गंभीर है कभी किसी मंच से तो कभी किसी चुनावी सभा में हर दिन आपको आतंकवाद और पाकिस्तान के खिलाफ वही घिसी पीटी तल्ख बयानबाज़ियां सुनने को मिलती रहेंगी ।